Saturday, October 23, 2010

भारत की गरीबी और महंगाई

देश में महंगाई आम जनता के ऊपर इस कदर हैवी है की उनको कई ऐसी चीजों से दूरी बनानी पद रही है, जिसे वे खरीद सकने में अक्षम है। दूसरी ओर महंगाई को लेकर ऊँची कुर्सी में बैठे नेताओं को इसकी कोई चिंता नहीं है। तभी तो महंगाई के नाम पर कृषि मंत्री शरद पवार आये दी ऐसे-ऐसे बयान दे जाते हैं, जिससे देश की आम जनता को आघात लगता है। बावजूद ये नेता जनता की चिंता कम करते हैं। ऐसा नहीं होता तो, वे आये दी महंगाई बढ़ने के लिए बयान नहीं देते। कृषि मंत्री तो जब भी मुंह खोलते हैं, उस दिन उनका बयान आम जनता के लिए शामत बनकर आता है। बीते कुछ सालों से देश जनता महंगाई से ऐसी पीस रही है, लेकिन आम आदमी के साथ हाथ होने का दावा करने वाली पार्टी के नेता केंद्र में सरकार बनते ही इन बातों को भूल गए हैं। इस तरह बेचारी आम जनता जाए तो जाए कहाँ।
अभी हाल ही में कृषि मंत्री शरद पवार ने एक बार फिर जिस तरह से गैर जिम्मेदाराना बयान दिए हैं, उससे तो जनता की कोई अहमियत ही नहीं रह गई है। जिस जनता के पैसे से वह कृषि मंत्री को सभी सुविधाएँ नसीब हो रही हैं, उन्ही के बारे में जब सरकार और उसके मंत्री सोचना बंद कर दे तो भला इसे क्या कहा जा सकता है। महंगाई के कारन लोग जैसे-तैसे अपना जीवन जी रहे हैं, वहीँ इन्हीं जनता के पैसे से ये नेता ऐश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें उस जनता की फिक्र करने की जरुरत नहीं है, जिन्होंने इन जैसों को कुर्सी पर बीती है। उसी जनता को किनारा करके कृषि मंत्री शरद पवार जैसे नेता मजे कर रहे हैं। महंगाई को लेकर आम जनता में हाय-तौबा मची है, लेकिन नेता है की बयान देने से बाज नहीं आते। शरद पवार ने अह कहा है की भारत में जितनी महंगाई है, उससे कहीं ज्यादा दुनिया के कई देशों में है। यह बात भी सही है, लेकिन कृषि मंत्री जी जिन देशों में महंगाई भारत से अधिक होने की बात कह रहे हैं, का वहां भारत जैसी गरीबी है ? निश्चित ही ऐसा नहीं है, जी देशों में महंगाई अधिक है, वहां आम लोगों की आय इतनी अधिक है की उन्हें महंगाई का कोई फर्क ही नहीं पड़ता, जबकि भारत में गरीबी इस कदर है की आम जनता की महंगाई के कारन हालत खराब है। रोज जनता महंगाई से पिस रही है। जनता की बेबसी का अंदाजा सुरेश तेंदुलकर की रिपोर्ट से पता चलता है, जिसमें बताया गया है की कैसे भारत की गरीब जनता महज २० रूपये में गुजारा करती है। यहाँ पर हमारा यही काना है की भारत में महंगाई बढती जा रही है और इस देश के नेता अपनी जवावदेही से बचने के लिए अनाप-शनाप बयान दे तो फिर ऐसे नेताओं की मनसिकत को दिवालियापन ही कहा जा सकता है।
महंगाई को लेकर ऐसा पहली बार बयान कृषि मंत्री ने नहीं दिया है, इससे पहले वे कुछ ऐसा कह जाते थे, जिसके बाद महंगाई बढती थी और इसका सीधा लाभ माल दबा कर रखने वालों को मिलता था। अह सिलसिला अब भी जारी है। महंगाई बढ़ रही है और जनता उसके निचे रह कर सब सहन कर रही है। हल्लंकी नेताओं के बयानबाजी को आम जनता समझ रही है, आने वाले दिनों में इस आम आदमी के साथ होने का दवा करने वाली सरकार को जरुर सबक सिख्येगी।

यहाँ दिलचस्प बात यह है की महंगाई पर अन्किश हमारे अर्थशात्री प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह भी नहीं लगा सके, वे केवल इतना दिलासा जनता को देते आ रहे हैं की जल्दी ही महंगाई से निजात पा ली जायेगे, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। आलम यह है की इस महंगाई से केवल व जनता ही पीस रही है, जिनके पैसे से सरकार चल रही है और उसके मंत्री मजे की जिंदगी जी रहे हैं।

Monday, October 18, 2010

नई दिल्ली .१९ वे कॉमनवेल्थ खेलो  के ख़त्म होने के बाद सरकार का पूरा जोर खेलो से जुड़े  भ्रष्टाचार    के आरोपों की जाँच पर है  इसी सिलसिले की आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी की इन खेलो के आयोजन के लिए गतिथ मंत्री समूह के साथ इन खेलो के आयोजन के लिए गतिथ मंत्री समूह के साथ बैठक  है मंत्री समूह की अगुवाई केन्द्रिय शहरी विकाश मंत्री जयपाल रेड्डी कर रहे है इस बैठक  me  सुरेश कलमाड़ी से  

Friday, October 15, 2010

ऐसे में इस संबंध में पाकिस्तान के सिंध उच्च न्यायालय ने गुरुवार को उस संवैधानिक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें 2007 में देश में आपातकाल लागू करने के कारण पूर्व सैन्य शासक जनरल परवेज मुशर्रफ के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाने की मांग की गई थी।                                                                                                                                                               हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता से कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट जाए क्योंकि वहां इसी मामले की सुनवाई चल रही है। ऐसे में इस संबंध में उच्च न्यायालय का कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा। सिंध उच्च न्यायालय के वकील मौलवी इकबाल हैदर की ओर से दायर की गई इस याचिका में मुशर्रफ के साथ-साथ उनके दो सहयोगियों के खिलाफ भी मुकदमा चलाने की मांग की गई थी।

Thursday, October 14, 2010

सिरसा -सरकार ने आज कहा कि सर्व शिक्षा अभियान एसएसए के तहत विशेष तौर पर ध्यान दिए जाने वाले 314 जिलों की पहचान की गई है जिसके तहत इन क्षेत्रों में स्कूलों की आधारभ्ूात ढांचे में सुधार बच्चों की उपस्थिति बढाने और लैंगिक भेद को कम किया जाएगा।
लोकसभा में जय श्री बेन पटेल और डा0 भोला सिंह के प्रश्न के लिखित उतर में मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा श्एसएसए के तहत विशेष तौर पर ध्यान दिए जाने वाले 314 जिलों में ऐसे जिलों को शामिल किया गया है जहां प्राथमिक से उच्च प्राथमिक स्कूलों का अनुपात 3़ः1 से अधिक शिक्षण कक्षों का अंतर 3000 शिक्षण कक्षों से अधिक स्कूलों में बालक बालिका अंतर प्राथमिक स्तर पर 10 प्रतिशत और उच्च प्राथमिक स्तर पर 20 प्रतिशत तथा अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अथवा अल्पसंख्यकों की आबादी 25 प्रतिशत से अधिक हो।
सिब्बल ने कहा कि इन जिलों को उपयुक्त मानदंडों के अनुसार श्रेणीबद्ध किया गया है ताकि उन्हें सर्व सुलभ प्रारंभिक शिक्षा का लक्ष्य प्राप्त करने और इस संबध में कमियों को दूर करने में मदद मिल सके। 

Monday, October 11, 2010

गरीबों का काल है कोम्न्वेल्थ खेल

खेलों का आयोजन करवाना कोई बुरी बात भी नहीं है क्योंकि खेल रास्ट्रीयभावना और प्रेम प्यार कि भावना को मजबूत करते है लेकिन यदि गरीबों कि दुर्दशा या महंगाई को देखा जाये तो यह उनके लिए एक अभिशाप बन जायेगा । कोमनवेल्थ खेलों का आयोजन करने वालों के घरों में चाहे बेअंदाज पैसा आ जाये लेकिन उन गरीब लोगों कि कोन सुनेगा जिन्हें कोमनवेल्थ खेल के चलते दिल्ली में आने तक कि अनुमति नहीं है इस हाल को देखकर तो मुझे एक शायर कि लाइन याद आ रही है ......
"लोग चढ़ा रहे है मजारों पर चादरें ,
लेकिन किसे खबर कि कोई बेकफन भी हैं" ।
भारत मुनियों और धर्म कि भूमि माना जाता है जहाँ यह सत्य कहते है कि हमें अपनी हेसियत और ओकात में रहकर खर्च करना चाहिए या कि चादर देखकर पैर पसारना चाहिए । तो भारत में कोमनवेल्थ खेलों को आयोजित करने में जितना पैसा बहाया जा रहा है क्या उससे आम आदमी को एक रूपए का भी फायदा हुआ है ?क्या कोई यह प्रावधान है कि कोई एक भी गरीब आदमी उस खेल को देखने कि विशेष छुट मिली है ?.........लेकिन उनके लिए एक तोहफा जरुर दिया गया है , महंगाई का वो फंदा जो कुछ दिन पहले बसों का किराया बढाकर उनके गले में डाला गया था ।
५० करोड़ का वो गुबारा जिसके पैसों को यदि रोडवेज विभाग को दिया होता तो शायद इस परेशानी से तो नहीं जूझना होता । और यदि इन पैसों को शिक्षा विभाग या खेल नर्सरियों को तेयार करने में लगाया जाता तो आने वाले समय में जब भी विश्व में खेल होते तो भारत का स्वर्ण , रजत और कांस्य पदक विजेताओं में पहला स्थान होता ।